(ये इस ब्लॉग की पहली प्रविष्टि है तो सोचा इसे भगवान गणेश को समर्पित करूँ.... ।। श्री गणेशाय नमः ।। )
गणपति भगवान कितना खुश होते होंगे न! गणेश चतुर्थी से दस दिन तक कितनी तवज्जो मिलती है उन्हें. अरे अपन को तो एक दिन इज्जत मिल जाए तो दस साल याद रखें की सन 2010 में किसीने दो मिनट इज्जत से बात की थी. पर भगवान गणेश को तो हर साल दस दिन जमकर पूजा जाता है. हाँ बाकी दिन दुर्गा माँ, शनि महाराज, शिवजी आदि "कठिन" भगवानों को मनाने में लग जाते हैं. बात दरअसल ये है की कल एक ख़त मिला..भगवन गणेश का. उसपर उनका पता नहीं लिखा था! अब भगवान का पता किसे पता?मुझे ख़त लिखने का कारण यही समझ आया की भगवन ने सोचा होगा किसी "अपने" को ख़त लिखूं.और मेरा तो नाम ही "विनायक" है! मैं उनका न सही..पर नाम तो उनका अपना है. तो उस ख़त से भगवान गणेश का यही दर्द समझ आया की उन्हें कोई "seriously " नहीं ले रहा है. ये ख़त सभी "भक्तगणों" को संबोधित था तो आप सभी भक्तों के समक्ष प्रस्तुत है.
प्रिय भक्तगणों,
मैं गणेश हूँ. भगवान शिव का पुत्र. मुझे आप गणपति, लम्बोदर, सिद्धिविनायक, गजानन आदि नामों से भी पुकारते हैं. जी हाँ मैं आपका वही भगवान हूँ जिसकी पूजा आप प्रथम पूज्यनीय बनाकर शुरू में ही निपटा देते हैं. क्यूंकि आपके पास और भी "भगवान" हैं खुश करने के लिए. हालांकि मैं बहुत आभारी हूँ आप लोगों का की हर वर्ष आप दस दिवसीय गणेशोत्सव मनाते हैं मेरे लिए. पर मेरी कुछ शिकायतें हैं आपसे. आप सभी मेरे पास तो आते रहते हैं अपनी शिकायत लेकर..कभी नौकरी की सिफारिश, दुश्मन से छुटकारा, कभी प्रेम का चक्कर आदि. पर इस बार कुछ मेरी शिकायतें सुनिए. मैं आपसे पूछना चाहता हूँ की आप मुझे भगवान समझते भी हैं या नहीं?या आपने नए भगवान ढूंढ लिए हैं?कभी कभी लगता है की मैं एक मनोरंजन का साधन बन गया हूँ. मंदिरों के अलावा खिलौनों को दुकानों, बच्चों के डब्बों,कपड़ों , बर्तनों और न जाने कहाँ कहाँ आने लगा हूँ. माना की मेरा रूप अन्य भगवानों से अलग है पर हूँ तो मैं भगवान ही न!! चलिए इतना उपयोग मेरा ठीक है पर गणेशोत्सव के बहाने होने वाले मनोरंजक खेलों में तो आपने हद ही कर दी. अप्पको मालूम है अब मैं तम्बोला, तीन पत्ती यहाँ तक की जुआ तक खेलना सीख गया हूँ.ये सारे खेल आपने रातभर पंडाल में बैठ कर मेरे सामने खेलें है वहीँ से सीखा हूँ. आपको कोई ढंग का तरीका नहीं मिलता रात भर जागने के लिए. पंडाल की तेज़ और अनावश्यक रोशनी में आप न खुद सोते हैं न मुझे सोने देते हैं.
और अब आप मेरे कितने विचित्र रूप बनाने लगे हैं की मैं खुद को भी नहीं पहचान पाता. कभी पुलिस वर्दी में, कभी फ़ुटबाल खिलाड़ी के रूप में, तो कभी सूट-बूट में. और सबसे बड़ी बात मिट्टी छोड़कर न जाने किस किस पदार्थ से मुझे बनाया जा रहा है. घी से, बर्फ से, सेल से, सिलेंडर से. पता नहीं कैसे कैसे. हे भगवान! हाँ और कैसी भयानक सजावट करते हैं आप..बड़े बड़े बंद पंडालों में, गुफाओं में बिठा देते हैं आप जहाँ मेरा दम घुटता है. अभी पिछले साल की ही बात है. मुझे एक ट्रक्टर पर बैठा कर उसे चालू कर दिया और मैं दस दिन तक लगातार ट्रक्टर चलाता रहा. लगातार. मुझे इतना क्रोध आया जितना की मुझे अपने पिता से युद्ध करते समय भी नहीं आया था.
आप भक्तों के मुझ भगवान पर अत्याचारों की कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. अब तो आप मुझे अपने पापों में भी भागीदार बनाने लगे हैं. मेरा उत्सव मनाने के लिए बिजली की चोरी, अघुलनशील पदार्थों से निर्माण कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का पाप और मेरे नाम पर लिए गए चंदे का दुरुपयोग. अब तो आपका भगवान ही खुद को पापी महसूस कर रहा है. सो हे भक्तगणों अपने इस भगवान पर कृपा करो. मुझे इतने पंडालों. इतनी मूर्तियों, इतने रूपों, इतने खर्चे की आवश्यकता नहीं है. अगर आस्था रखनी है तो अपने दिल में रखो. मुझे भी थोडा भगवानोचित सम्मान दीजिये.इससे पहले की मुझे शक होने लगे की मैं भगवान हूँ या नहीं???!!
आपका भगवान
गणेश
Yaar DO Shabd & Sanjida bakwas bahut achha laga.Really tum bahut achhe harishankar parsai ban sakte ho.
ReplyDeleteyaar ek request hai tum engg. col k students & colg par kuch jaroor likho.
Tushar Turkar
shandar mindblowing ....... bade dino baad school wala vinayak yaad aa gaya .......... likhte raho yaar main toh zaroor padunga ..............
ReplyDeletethanks to be back again
deepanshu jain
तुषार और दीपांशु धन्यवाद!!
ReplyDeleteतुषार भाई प्रोत्साहन मिलता रहेगा आप लोगों का तो लेखन में निखार आता रहेगा. इंजीनियरिंग मैंने भी भुगती है तो उस पर भी ज़रूर लिखूंगा.साथ देते रहिये.
मेरे बचपन के साथी, मेरे पुराने चावल दीपांशु मैं हमेशा स्कूल वाला विनायक ही हूँ..ज़रा नींद लग गयी थी. साथ देते रहना..मुझे जगाये रखना :)
Wah Vinayak bhai hum to aapke is rachna me itna doob gaye tha ke main sooch raha tha kya sacchaiye bayan ke gaye hai is Khat me.......
ReplyDeletevinyak bhai as ever apki ye rachna bahaut hi unda hai .......... lage raho>>>>
ReplyDeleteanuragnawal
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही शानदार विनायक भाई मजा आ गया आपका ये प्रयास देख के .........
ReplyDeleteहम दिन भर मे तमाम फिजूल कि बाते करते है पर कभी उनके बारे में गहन विचार नही करते .
आपका ये ब्लॉग उन्ही विचारो को समर्पित है ......... मैंने भी कई बार सोचा पर कभी लिखने कि हिम्मत नही कि
पर आपका ये प्रयास देख कर थोड़ी हिम्मत आ गयी है
मैं जल्द ही एक विडियो ब्लॉग शुरू करने वाला हू जिसका नाम मैंने सोचा है " Young का व्यंग "
हिमांशु और अनुराग भाई उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद्...
ReplyDeleteजोरदार शुरुआत है विनायक भाई.... अब जब तुम आ ही गए हो ब्लॉग पर, तो मुझे भी कुछ लिखने का प्रोत्साहन मिलता रहेगा | आपके व्यंग बहुत शानदार रहते हैं |
ReplyDeleteदो शब्द का प्रथम चरण मन को छू गया दोस्त..... लिखते रहना...
तुम्हारा संकट
प्रांशु भाई शुक्रिया...
ReplyDeleteबस यहाँ ऐसी ही बकवासों का ज़िक्र करने का प्रयास रहेगा जिनके अन्दर संजीदिगी भी है..साथ ही मेरे मन की और भी बातें..बस साथ देते रहिये.
"Young का व्यंग"...ब्लॉग के शीर्षक ने ही उत्सुकता जगा दी है...इंतज़ार रहेगा आपके ब्लॉग का.
अरे संकेत मेरी जान..शुक्रिया..बस ऐसे हे साथ देते रहो दोस्त..लिखता रहूँगा..तुम भी लिखो,. :)
ReplyDeleteक्या बात है विनायक। आखिर तुमने भी चुट्ठाकारी शुरु कर ही दी। बढिया है। लगे रहो। तुम्हारी संजीदा बकवासों का इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteएक बात समझ नहीं आयी, जब तुम ब्लॉगर पर nov. 09 से हो तो फिर पहला पोस्ट करने मे इतना समय क्यों लगाया?
ReplyDeleteसोमेश जी आपकी टिप्पणी देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है. ये ब्लॉग बस आपके आशीर्वाद और सोहबत का नतीजा है..
ReplyDeleteसोचा भले ही कुछ अनगढ़ सा .अपरिपक्व सा ही लिखूं पर कुछ कोशिश तो करूँ. ..बस साथ देते रहिएगा.
जहाँ तक देरी का सवाल है तो इसके लिए वही पुराना जुमला..जब जागे तभी सवेरा :)
पर मुझे आपसे शिकायत भी है. आपका ब्लॉग भी है..आपने मुझे बताया नहीं..आज देखा तो पढता ही रह गया...और वहां पर भी तीन साल से खामोशी है..ऐसा क्यूँ???
जबकि आपको लिखना चाहिए.शानदार है आपका ब्लॉग.
खामोशी के कई कारण हैं। विस्तार से फिर कभी बताऊंगा। फ़िलहाल एक बात तो कह ही सकता हूँ कि-
ReplyDelete"तुमने जिस काम को अभी शुरु किया है उसे मैं तीन साल पहले ही करके छोड़ चुका हूँ।" :) ;)
:):)
ReplyDeletesabse pajle badhai swikar kare sanjida kism ki "sanjida bakwas ki"
ReplyDeleteblog ka aisa naamkaran to aap hi kar sakte hain :)
is patr k bare main jarur kahna chahunga ki mere liye ye un lekhon me se hoga jo avismarniya hain ..
ganesh ji ki wyatha vinaya ji ki jubani
bahut accha
पियूष भाई शुक्रिया... :)
ReplyDeleteAjkal har Bhagvan ka yhi dard he. Har koi Bhagvaan kisi ne kisi shikayat ko lekar hame khat likhte rahte hain. Par hum to insaan he na !! Bhagvaan ki bhi nhi sunte :(
ReplyDeleteBhagvaan k naam par har kuchh jayaj samajh kar kar rahe hain. Very bad !!