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ख़ारिज़ रचनाएँ- By Lalit Kishore Gautam
हर गली में कूचे में सुबह और शाम देखा,
जो तुमने देखा हमने भी सरेआम देखा.
इंसानियत कोने में बैठी सिसकती देखी,
हमने दहशत को मिलता इनाम देखा.
मरने से पहले तक तो इंसान था वो,
सूरत-ए-मौत पर मज़हब का नाम देखा.
देखी सड़कें हमने सुर्ख लाल होती,
हर एक मोड़ पर हमने शमशान देखा.
उन चेहरों की चढ़ती त्योरियां देखी,
जिनपे था कभी दुआ-सलाम देखा.
बेजुबानों को भी देखा दर्द समझते,
बेदिल तो हमने बस इंसान देखा.
ग़म तो बस ये की कुछ कर न सके,
हमने चुपचाप ये किस्सा तमाम देखा.
जो तुमने देखा हमने भी सरेआम देखा.
हुआ गुनाह हमसे हमने वो कत्लेआम देखा.
-विनायक

बकवास का बाज़ार गरम है. और इस बाज़ार में संजीदगी भी बिक रही है.बकवास बातों को बेहद संजीदगी से लिया जा रहा है और संजीदा बातों पर बकवास! बकवास का शौक मैंने भी पाल रखा है. अभी तक ये बकवास मौखिक रूप तक सीमित थी. अब चूँकि बकवास का दायरा असीमित है इसलिए मैंने बकवास कल्पनाओं के घोड़े इस चिठ्ठे पर छोड़ना तय किया है, वो भी पूरी संजीदगी से. तो लीजिये पेश है "संजीदा बकवास". उम्मीद है इस बकवास में आप मेरा संजीदगी से साथ देंगे. आपका साथ,समर्थन,समीक्षा,समालोचना,सुझाव,किसी भी "स" का स्वागत है..
यूँ कुछ कमियां तो हैं इस रचना मे पर प्रयास अच्छा है।
ReplyDeleteशुक्रिया... कमियां दूर करने की कोशिश जारी रहेगी. :)
ReplyDelete:-)
ReplyDeletemast hai yar ....
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